देखने देते हो आसमान पालने देते हो उड़ान के सपने और फिर उठा देते हो काँच की दीवारें चारों तरफ ताके हम बाहर साफ़ देख सकें और समझें कि हम उड़ने के लिए आज़ाद हैं लेकिन जैसे ही उड़ान की कोशिश करें दीवार से टकराएँ टकरा कर सर फोड़ लें, गिर पड़ें, मर जाएँ !
हिंदी समय में अशोक कुमार की रचनाएँ